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मुखिया जी / भारत यायावर
Kavita Kosh से
मुखिया जी अब नहीं रहे मुखिया
मुखिया जी के घर में
कभी जमती थी बैठक
जमा होते थे
चार गाँव के लोग
चार गाँव की बातें
चार गाँव की इज्ज़त
होती थी एक
मुखिया जी की बैठक में
किसी की भी शादी में
मुखिया जी होते थे
अपने घर की तरह खड़े
किसी के श्राद्ध में
होते थे उसी तरह बेचैन
जैसे हुए थे अपनी माँ की मृत्यु पर दुखी
मुखिया जी पूरे गाँव की
नाक थे
पर यह कैसे हुआ
कि उनकी नाक पर एक मक्खी बैठ गई
उनकी नाक को कर गई गंदा
मुखिया जी धीरे-धीरे गाँव की
नाक की जगह
हो गए कान
अब
उनकी बातों से
किसी के कानों पर
जूँ तक नहीं रेंगती
मुखिया जी
हो गए अकेले
अपनी बैठक के
रह गए एकमात्र सहचर
मुखिया जी अब मुखिया नहीं रहे
और चार गाँव की बातें
चार गाँव की इज्ज़त
हो गई अलग-अलग