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मुखौटा / संतोष श्रीवास्तव
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					पहचान लेता है 
हर चेहरा मुखौटा 
दिल में मरोड़ी जाती तमन्नाओं को,
कहकहों में छुपे अश्कों के समंदर को 
समझता है खूब 
वक्त और हालात के चेहरे 
जो मजबूर हैं 
तपाक से कुर्सी का हुक्म बजा लेने को 
और उन्हें भी जो 
कुर्सी को नचा लेते हैं 
अपना हुक्म  बजा लाने को
समझता है खूब
जिनके चेहरों पर
चढ़े हैं सच्चाई के मुखौटे 
झूठ औ मक्कारी छुपाए
तमाम दांवपेच सहित
वोट पाने को
हैरान है चेहरों की 
गुम हुई पहचान से
ढूंढ रहा है मुखौटों के इस शहर में 
असली चेहरे को
मुखौटा
 
	
	

