भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुखौटे / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
लाभ–शुभ के गणित में
चिपकाए रहा मुखौटे!
धीरे-धीरे उन पर,
आती गई चमड़ी
जिस्म में उतर गए मुखौटे!
अब मुक्त होने की कोशिश में
खिंचती है चमड़ी
रिसता है लहू!
धोता हूँ शरीर
चमचमाते हैं मुखौटे!
मुखौटों में भर गई जिन्दगी
जिन्दगी में भर गए मुखौटे
अब न चेहरे खरे
न मुखौटे खोटे!