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मुगत करूं थानै / प्रमोद कुमार शर्मा
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लै मेरी आत्मा
मुगत करूं थानै आज
म्हारै सबदां रै मकड़जाळ स्यूं
जठै थारौ हुवणौ कीं नी
बठै म्हारी के बिसात ?
तोडूं आज आ कैद .....
इण इश्तेहार साथै, क
मेरा अजीजो !
आज स्यूं मेरे साहित्यकार नै
म्हारी आत्मा स्यूं जुदा समझ्या
क्यूं‘कै मैं भूल ग्यौ हो
कै साहित्य आत्मा रो सिरजण नही है
खेल है,
मर अर बुद्धि रो !