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मुझको गहराई में मिट्टी की उतर जाना है / मुनव्वर राना
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मुझको गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
ज़िंदगी बाँध ले सामाने-सफ़र <ref>यात्रा का सामान </ref>जाना है
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ-बाप को रोते हुए मर जाना है
ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह है मेरी
और पत्तों को बहरहाल बिखर जाना है
एक बेनाम से रिश्ते की तमन्ना लेकर
इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है
शब्दार्थ
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