भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझको तुमसे प्यार नहीं है / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम स्वीकार करो न करो पर मुझको यह स्वीकार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।

माना क्या है अर्थ प्यार का
मुझको बिलकुल नहीं पता है।
और प्यार की परिभाषा भी
मैं न बता सकता हूँ, क्या है।
फिर भी लगता बिना तुम्हारे कुछ भी यह संसार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।

 'प्यार' शब्द ढाई आखर का
पर इसमें कितनी गहराई.
कोई कितना भी डूबा हो
लेकिन इसकी थाह न पाई.
सच मानो इस एक शब्द का कोई पारावार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।

संत कबीरा मस्त फकीरा
इसकी महिमा को यों गाये-
ढाई आखर पढ़े प्रेम के
जो भी वह पंडित हो जाये।
इससे बड़ा ज्ञान का जग में कोई भी भंडार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।