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मुझको थोड़ी ख़ुशी मिली / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
इंतज़ार करते-करते जब बैठ रहा था दिल मेरा,
तभी द्वार पर दस्तक सुनकर मुझको थोड़ी ख़ुशी मिली।
मैं जैसा था वैसा भागा
सीधे दरवाज़े पर आया।
जैसे ही दरवाज़ा खोला
तुमको खड़ा सामने पाया।
उस पल की ख़ुशहाली का तुम मुझसे आलम मत पूछो,
ऐसा लगा-किसी इक पल को जैसे पूरी सदी मिली।
वैसे तो आने में तुमने
कर डाली थी काफ़ी देरी।
राह तुम्हारी देख-देख कर
पथरायीं थीं आँखें मेरी।
मुझको पथ के सिवा दिखाई नहीं दे रहा था कुछ भी,
तुम्हें देखते ही आँखों को फिर पूरी रौशनी मिली।
कुछ पल साथ तुम्हारे बैठा
तुमसे दिल का हाल बताया।
जिसको सुनकर तुम मुस्काये
तुम्हें देखकर मैं मुस्काया।
इतना पाकर क्या-क्या पाया कैसे तुम्हें बताऊँ मैं,
बस तुम इतना समझो मुझको एक नयी ज़िन्दगी मिली।