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मुझको दोहराते हो क्यों भूला हुआ क़िस्सा हूँ मैं / साग़र पालमपुरी

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मुझको दोहराते हो क्यों भूला हुआ क़िस्सा हूँ मैं
आँधियों की गोद में एक बर्ग-ए- आवारा हूँ मैं
 
मुझको वादों के खिलौनों से न यूँ बहलाओ तुम
ज़िंदगी से है जो इंसाँ को वही शिकवा हूँ मैं
 
कैसे अपनी ख़ुदनुमाई का मुझे एहसास हो
सामने अपने ही कब खुल कर कभी आया हूँ मैं
 
रहनुमाओ ! गो मेरी अपनी कोई मंज़िल नहीं
सैकड़ों को मंज़िलों पर छोड़ कर आया हूँ मैं
 
देखते ही जिसको भर आए गुलो शबनम की आँख
ऐ चमन वालो ! वही ग़मनाक नज़्ज़ारा हूँ मैं