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मुझको बुला रहे हैं सितारे पुकार के / सिया सचदेव

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मुझको बुला रहे हैं सितारे पुकार के
लगता हैं ख़त्म हो गए दिन इंतज़ार के

आईना बन गयीं तिरी आँखे मेरे लिए
मुद्दत के बाद देखा है खुद को सवाँर के

रिश्तों के ख़ारज़ार में तन्हा खड़ी हूँ मैं
अब ज़िंदगी से रूठ गए दिन बहार के

ताज़ीम में झुकाया था सर जिनके सामने
वो ले गए हैं आज मेरा सर उतार के

पूरी नहीं हुई हैं अभी ज़िम्मेदारियाँ
कुछ दिन ख़ुदा से माँग के देखूँ उधार के

दुश्मन से जीत आयी थी हर जंग मैं सिया
अपने ही घर में बैठी हूँ अपनों से हार के