भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझको यादों की ही जीनत दे दे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
मुझको यादों की ही जीनत दे दे
अपनी थोड़ी सी मुहब्बत दे दे
पास तू लौट के जिनमे आये
ऐसे ख्वाबों को हकीकत दे दे
देख आतंक पांव थर्राए
सह सकूँ इनको वो आदत दे दे
दर्द को कौन चाहता सहना
अश्क़ पीने की इजाज़त दे दे
एक पल भी नहीं गुजरे तुझ बिन
प्यार में मेरे वो शिद्दत दे दे
रोज काँटे बिखेरे राहों में
मेरे दुश्मन को वो ज़हमत दे दे
अपने कर्मों पे रहे शर्मिन्दा
हर बशर में वो नदामत दे दे
जो मुझे पार करा दे सागर
मेरी कश्ती को वो किस्मत दे दे
जिंदगी किस तरह गुजारूं मैं
कुछ इशारा इसी बाबत दे दे