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मुझको ही एहसास हुआ क्या / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
मुझको ही एहसास हुआ क्या
चाँद फ़लक पर आज दिखा क्या
डोल रहा आँगन में मेरे
कोई खुशबू का झोंका क्या
खुशियाँ तो हैं रूठ चुकीं सब
एक तबस्सुम सा झलका क्या
नींद नहीं आती आंखों में
आज लगा कोई पहरा क्या
दीवाली के ही कारण बस
सिर्फ प्रदूषण है फैला क्या
महकी महकी दिल की वादी
आज इधर से वो गुजरा क्या
मन है ढूँढ़ रहा तनहाई
सोच रही हूँ मैं क्या से क्या