भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझपे फिर नज़्म कैसे लिख डाली / शिवांगी गोयल
Kavita Kosh से
कोई कविता मिली थी क्या मुझमें
या कोई रेख़्ता मुकम्मल था?
मेरी तस्वीर-भर को देखा था
या कोई कारवाँ मुसलसल था?
रात मैं रोज़ जैसी सोई थी,
तुम भला ख़्वाब जैसे क्यों जागे?
मैं कोई शब्द थी ज़हन का क्या,
मेरी तस्वीर क्यों रखी आगे?
मैं तो वह बदन भी नहीं हूँ जाँ
जिसको तुम महजबीं-सा चूम सको;
ना ही वह काफ़िया ग़ज़ल का हूँ
जिसको तुम गुनगुना के झूम सको
चन्द अशआर से बहल जाऊँ
इतनी तो मैं नहीं भोली-भाली!
फिर भला इतना प्यार क्यों मुझसे?
मुझपे फिर नज़्म कैसे लिख डाली!