मुझसे मत पूछ / हरीश भादानी
मुझसे मत पूछ कि-
अलसाई हुई सुबह कहाँ है ?
मुझसे मत पूछ-
हिनाई हुई शाम कहाँ है ?
मुझसे मत पूछ कि-
साँसों के गरम आगोस में पले
वो जवाँ अरमान कहाँ है?
मुझसे मत पूछ-
मैं वही हूँ या नहीं ?
मुझसे मत पूछ-
तू वही है या नहीं ?
मुझसे मत पूछ-
किसने किसको बदल डाला है ?
किस हवा ने-
चमन का चमन ही झुलस डाला है ?
मुझसे मत पूछ कि-
दर्द बहकता क्यों है ?
कोरों में छिपा
अश्क दहकता क्यों है ?
मुझसे मत पूछ कि-
सपने जो मुर्दा हैं
वे अब तक भी दफ़न क्यों न हुए ?
वे जो अपने हैं,
वे जो जिन्दा हैं-
उन्होंने कफ़न क्यों न दिये ?
मुझसे मन पूछ कि-
सपनों की सजी लाश से उठती हुई
बदबू से-
मैं, तुमको, तुम जैसी ही दुनिया को
क्यों परेशान किये हूँ ?
अपने ही नहीं
किस-किसके गुनाहों का मैं बोझ लिये हूँ ?
मुझसे मत पूछ कि क्या बात है-
कंगनिया कलाई में बन्धा ईमान
फिसल ही गया-
ओ कदम जिसने
मुफ़लिसी के बीयाबनों में
चलने की कसम खाई थी
वो रंगी-रेशम के हिडोले में चलने को
मचल ही गया-
मुझसे मत पूछ कि मुझको
तेरी अदबी पुकारों से,
तेरे बहके हुए कदमों से शिकायत है या नहीं ?
तेरी बदली हुई नज़रों से
तेरे कमज़ोर इरादों से
अदावत है या नहीं ?
मुझसे मत पूछ !