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मुझसे मिलने को आओ न / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’
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जो चले गये तुम जीवन से
अब यादों से भी जाओ न
बेमतलब ही यूँ रह रहकर
ऐसे तो मुझे सताओ न
जो जीते जी न हो संभव
उन तारों को लाऊँ कैसे
आँखों से नींद भी छीन गये
अब सपनों में जाऊँ कैसे?
चुन चुनकर ख्वाब सजाए थे
तुमने ही पलकों के तले
पर आज इजाजत भी न दी
मेरे होठों पर मुस्कान पले
कोई संवेदनाएँ नहीं जीवित
मृतप्राय हो गया रिश्ता है
जो प्रीत की व्याख्या रही कभी
अब वही निरर्थक दिखता है।
चली अपनी अर्थी ले कांधे
सुनो गंगा के तट आओ न
मुखाग्नि तक का वादा था
चलो अंतिम राह दिखाओ न
मुझसे मिलने को आओ न...