भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझें भी मिल जायें / पुरूषोत्तम व्यास
Kavita Kosh से
मुझें भी मिल जायें
खजाना
अलीबाबा का जो चोरी का
धन
जिसमें कही लोंगों के आंसू थे हाय थी
और
अलीबाबा को मालूम था
धन ऐसे नही इकठ्ठा किया
जाता