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मुझे–न मिलेंगे–आप / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
मुझे
न मिलेंगे आप,
आपका
एकाकी क्षण हूँ मैं;
आपका
भय और पाप,
आपका
एकाकीपन हूँ मैं।
आसमान
ढँके हुए है
समुद्र का
नील द्रव्य -
देर से वह
तके हुए है
आपका
और मेरा कर्तव्य।
बरस पड़ेगा वह
सर पर -
उससे
बचाव कोई नहीं।
वह अपनी
समाधि है ऊपर;
उसमें
अपनाव कोई नहीं।
[1943]