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मुझे अकेला ही रहने दो / गोपालशरण सिंह
Kavita Kosh से
रहने दो मुझको निर्जन में
काँटों को चुभने दो तन में
मैं न चाहता सुख जीवन में
करो न चिंता मेरी मन में
घोर यातना ही सहने दो
मुझे अकेला ही रहने दो !
मैं न चाहता हार बनूँ मैं
या कि प्रेम उपहार बनूँ मैं
या कि शीश-शृंगार बनूँ मैं
मैं हूँ फूल मुझे जीवन की
सरिता में ही तुम बहने दो
मुझे अकेला ही रहने दो !
नहीं चाहता हूँ मैं आदर
हेम और रत्नों का सागर
नहीं चाहता हूँ कोई वर
मत रोको इस निर्मम जग को
जो जी में आए कहने दो
मुझे अकेला ही रहने दो !