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मुझे अच्छे लगते हैं पहाड़ / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
मुझे अच्छे लगते हैं पहाड़
इसलिए नहीं कि पहाड़ पर होते हैं सेब
पहाड़ पर होती है बर्फ
या फिर मैं पैदा हुआ पहाड़ पर
पहाड़ पर होते हैं बेशुमार नदियों के घर
पहाड़ पर होती हैं आग की गुफाएँ
सेब की खुशबू
कम्बल की गरमाहट
पिता की पीठ
सभी कुछ एक साथ है पहाड़
सागर का सपना है पहाड़
पहाड़ घड़ों में छुपी मनुष्य की प्यास है
पहाड़ सूरज के खिलाफ लड़ने वाला
हरी वर्दी वाला अकेला सिपाही है
वह करता है विषपान सुबह से शाम तक
फिर भी बाँटता है ज़िन्दगी के अनगिनत सपनें
पहाड़ आग और पानी
राजा और रानी दोनों एक साथ है
ज़मीन पर ज़िन्दगी की
नंगी इमारत है पहाड़
पृथ्वी की खूबसूरत शरारत है पहाड़।