है मंज़िल सामने तो रस्ता-ए-मंज़िल नहीं मिलता
मुझे अब कत्ल होना है मगर कातिल नहीं मिलता
अजब उसकी महब्बत है अजब है मेरा दिलबर भी
वो मिलता है मुझे लेकिन सरे-महफ़िल नहीं मिलता
जिधर भी देखता हूँ मैं, जहां तक देख पाता हूँ
समुंदर ही समुंदर है कहीं साहिल नहीं मिलता
लगा कर दिल, हमीं ने दिल को इस मुश्किल में डाला है
कहीं अब दिल नहीं लगता, किसी से दिल नहीं मिलता
ज़माना हमकदम हमदम है जब तक दिन सुहाने हैं
कहीं कोई सहारा, जब पड़े मुश्किल, नहीं मिलता
महब्बत कर के मैने यह अजब अहसास पाया है
कहीं कोई मुझे नफ़रत के अब काबिल नहीं मिलता