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मुझे अब तुम्हें भूल जाना चाहिए मेरी प्रियतमा / मुकेश मानस

मुझे अब तुम्हें भूल जाना चाहिए मेरी प्रियतमा
मेरे जैसे आदमी के लिए
जिसे समाज की कोई परवाह ही नहीं है
यही सबसे बड़ी सज़ा है

हालाँकि मैं जानता हूँ कि प्यार को
और सच्चे प्यार को भुलाना कितना कठिन काम है
फिर भी जब इन दिनों
प्यार जब शर्तों पर किया जाने लगा हो

और प्यार करने के कायदे बना दिए गए हों
जिन्हें न मानने पर प्यार को क़त्ल किया जा रहा हो सरे-बाज़ार
ऐसे हालात में एक भले नागरिक की तरह जीने के लिए
प्यार को भुला देना ही बेहतर है
फिर चाहे वो सच्चा प्यार ही क्यों ना हो

मुझे ये भी अच्छी तरह मालूम है
कि तुम्हें भूल जाने का स्वांग भर करने पर भी
मेरा जीवन पटरी पर आ जाएगा पहले की तरह
मान लिया जाएगा मुझे फिर से एक भला मानुष
जितना ही अच्छी तरह से पालन करूँगा मैं क़ायदों का
उतनी ही प्रशंसा मिलती जाएगी मुझे बराबर
और मैं ये सब करता जाऊँगा नाटक के किसी पात्र की तरह
ये जानते हुए कि जो हो रहा है, सही नहीं हो रहा है

लेकिन क्या ख़त्म हो जाएगा सच्चा प्यार
मेरे हृदय से जुड़ गया है जो धड़कन की तरह
मेरी आँखों में बस गया है जो पुतली की तरह
त्वचा की तरह मेरे शरीर से एक-मेक हो गया है
और मुझमें समा गया है जो मेरी ही तरह

क्या मैं उससे जुदा हो पाऊँगा
तुमसे जुदा होने की तरह

पर अभी तो वक़्त का यही तकाज़ा है
कि मैं तुमको भूल जाऊँ मेरी प्रियतमा
हालाँकि मैं जानता हूँ कि प्यार को
और सच्चे प्यार को भुलाना कितना कठिन काम है
और मेरे जैसे आदमी के लिए
जिसे समाज की कोई परवाह ही नहीं है

यही सबसे बड़ी सज़ा है