भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे आधा बनाऊँगा, तुझे आधा बनाऊँगा / नवीन जोशी
Kavita Kosh से
मुझे आधा बनाऊँगा, तुझे आधा बनाऊँगा,
अधूरे इन बुतों से फिर बुत इक पूरा बनाऊँगा।
तू आएगा लगा के गर मुखौटा अपने चेहरे पर,
मैं फिर से उस मुखौटे पर तेरा चेहरा बनाऊँगा।
मेरी मिट्टी तेरी मिट्टी मिलाऊँगा मैं कुछ ऐसे,
मुझे तुझ-सा बनाऊँगा तुझे मुझ-सा बनाऊँगा।
बनाने दे अगर मुझ को, तुझे आदम बनाऊँ फिर,
मगर आदम के अंदर ही मैं अब हव्वा बनाऊँगा।
कई किरदार मैं दूँगा तुझे मेरी कहानी में,
कभी राधा बनाऊँगा कभी मीरा बनाऊँगा।
जलाल-ए-इश्क़ को मेरे ये तेरा हुस्न क्या जाने,
समुंदर है अगरचे तू तुझे प्यासा बनाऊँगा।
तेरा दीदार भी हो और हो ख़्वाहिश भी उजालों की,
मैं मेरे जिस्म के भीतर तेरा साया बनाऊँगा।