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मुझे आनंद होना था / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
मुझे होशियार लोगों को कभी ढ़ोना नहीं आया ,
कि ज़ालिम की तरह बेशर्म भी होना नहीं आया |
मैं यूँ ही घूमता था नाज़ से, उसकी मोहब्बत पर ,
मेरे हिस्से में उसके दिल का इक कोना नहीं आया |
अगर सुनते न वो हालात मेरे, कितना अच्छा था
ज़माने भर का गम था , पर उसे रोना नहीं आया |
खुदा को भी बहुत ऐतराज़, है मेरे उसूलों पर,
वो जैसा चाहता है मुझसे वो होना नहीं आया |
नहीं हासिल हुई रौनक , तो उसकी कुछ वजह ये है
बहुत पाने की चाहत थी मगर खोना नहीं आया |
मैं अक्सर खिलखिलाता हूँ, मगर ये रंज अब भी है,
मुझे ‘आनंद’ होना था ...मगर होना नहीं आया |