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मुझे ईख-सा पेर दे / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
मुझे ईख-सा पेर दे!
धरकर मुझे याद के दाँतों
मर्मपेषणक फेर दे!
पीड़ननिरत रहे स्मृतियंत्रक,
शेष लेश भी रस हो जब तक,
पर, पहले, यह गाँठोंवाली
मेरी छाल उधेर दे!
सिट्ठी हो जाएगी मेरी
सत्ता, जब जाएगी पेरी,
यह अनुरोध कि फिर भी मुझको
अकुलाने कुछ और दे!