मुझे एक बार जन्मने तो दो / कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
माँ,
मुझे एक बार जन्मने तो दो।
मैं खेलना चाहती हूँ
तुम्हारी गोद में,
लगना चाहती हूँ
तुम्हारे सीने से,
सुनना चाहती हूँ
मैं भी लोरी प्यार भरी,
मुझे एक बार जन्मने तो दो।
माँ,
क्या तुम नारी होकर भी
ऐसा कर सकती हो,
एक माँ होकर भी
अपनी कोख उजाड़ सकती हो,
क्या मैं तुम्हारी चाह नहीं,
क्या मैं तुम्हारा प्यार नहीं,
मैं भी जीना चाहती हूँ
मुझे एक बार जन्मने तो दो।
माँ,
मैं तो बस तुम्हें ही जानती हूँ,
तुम्हारी धड़कन ही पहचानती हूँ,
मेरी हर हलचल का
एहसास है तुम्हें,
मेरे आँसुओं को भी
तुम जरूर पहचानती होगी,
मेरे आँसुओं से
तुम्हारी भी आँखें भीगती होंगी,
मेरे आँसुओं की पहचान
मेरे पिता को कराओ,
मैं उनका भी अंश हूँ
यह एहसास तो कराओ,
मैं बनके दिखाऊँगी
उन्हें उनका बेटा,
मुझे एक बार जन्मने तो दो।
माँ,
तुम खामोश क्यों हो,
तुम इतनी उदास क्यों हो,
क्या तुम नहीं रोक सकती हो
मेरा जाना,
क्या तुम्हें भी प्रिय नहीं
मेरा आना,
तुम्हारी क्या मजबूरी है,
ऐसी कौन सी लाचारी है,
मजबूरी? लाचारी??
मैं अभी यही नहीं जानती,
क्योंकि
मैं कभी जन्मी ही नहीं,
कभी माँ बनी ही नहीं,
माँ,
मैं मिटाऊँगी तुम्हारी लाचारी,
दूर कर दूँगी मजबूरी,
बस,
मुझे एक बार जन्मने तो दो।