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मुझे किसी देवता की दरकार नहीं है / कल्पना पंत
Kavita Kosh से
मुझे किसी देवता की दरकार नहीं है
उन अंधेरों में
जिन्हें जबरन हमारी आँखों पर थोपा जाता है
चलाए जाते हैं नश्तर
लहुलुहान आत्माओं पर
थके पाँवों पर ठोक दी जाती हैं कीलें
सामने खत्म किया जाता है इतिहास
जंजीरों को आज़ादी से जोड़ कर पेश किया जाता है
सलीबों पर सम्भावनाओं को लटकाकर
भविष्य का नक्शा बनाया जाता है
दिन को रात और रात को दिन की तरह
चाँदी की तश्तरी में मखमली पैरहन पहनाकर
कंदीलों में किसी मासूम के सपनों को जलाकर की गयी रोशनी में सामने लाया जाता है
हाहाकार को संगीत बनाकर
जीते जी जीवन का मर्सिया गाने वाले
समय में
मुझे किसी देवता की दरकार नहीं है।