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मुझे टुकड़ा टुकड़ा बांट देना / जावेद आलम ख़ान
Kavita Kosh से
किसी दिन पानी-सा बहूँ
जमूं पिघलू और भाप बन बादल में रहूँ
किसी दिन बदल जाऊँ आग में
भभकूं सुलगूं और बदल जाऊँ राख में
किसी दिन हवा हो जाऊँ
उडू उड़ाऊँ और वायुमंडल में खो जाऊँ
किसी दिन धरती-सा बिछ जाऊँ
भार सहूँ वार सहू और नई कोंपलों में उग आऊँ
किसी दिन आकाश बन जाऊँ
फैलूं फैलाऊँ और सबके ऊपर तन जाऊँ
मेरे पंचमहाभूतों
किसी दिन मुझे अपनी तासीर दे देना
तमाम ज़रूरतो में मुझे टुकड़ा-टुकड़ा बांट देना
किसी की प्यास बुझा देना
किसी की रोटी सेंक देना
किसी को सांस दे देना
किसी का घर बना देना
किसी का सर छुपा देना