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मुझे टूट जाने से / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
मुझे टूट जाने से बचा रखोगे
तभी न रस कुछ मुझसे भी पाओगे!
कमी अमी की नहीं तुम्हारे मुख में
तुम्हीं नहीं सुख पाते अपने सुख में!
स्वाद बदलने क जब जी होता है
होंठ लगा देते हो मेरे दुख में!
मगर, फूट जाने से बचा रखोगे
तभी न मेरा विष भी पी पाओगे!