भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए / सत्यवान सौरभ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कर दे जो मन को तृप्त
ऐसा एक उपहार चाहिए!
बुझ जाये इस मन की प्यास,
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए!

चाहता अब मन नहीं, झरने-सा व्याकुल बहना!
चुभन काँटों की लिए, डूबा यादों में रहना!

दर्द का जो स्वाद बदल दे
मुझे वह अहसास चाहिए!
बुझ जाये मन की प्यास,
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए!

जब-जब तुझपे गीत लिखा, नाम तेरे मेरे मीत लिखा!
कैसे भूले तुझको साथी, हार को मैंने जीत लिखा!

पास बैठकर बात करो तुम,
मुझे न अब इंतज़ार चाहिए!
बुझ जाये इस मन की प्यास,
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए!

उजड़ा-उजड़ा जीवन ये, घूँट पीड़ा के पी रहा!
आकर देखो साथियाँ, कैसे हूँ मैं जी रहा!

चहक उठे मेरा घर-आँगन,
तेरे दुपट्टे की बहार चाहिए!
बुझ जाये इस मन की प्यास,
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए!