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मुझे नजर से न गिरा देना / चन्द्रमोहन रंजीत सिंह
Kavita Kosh से
शरण मे आके पड़ा हू इनके ही बिगड़ने से भगवान, दया को अपनी हटा न लेना।
तुम्हीं हो माता-पिता हमारे, प्रभु तुम भुला न देना
कमी न कुछ है तुम्हारे घर मंे, महान महिमा है मेरे स्वामी।
कहाँ रहे हो दयालु प्रभु तुम, दयालु को भुला न देना।
पतित न जग में कोई मुझ सम, न तुमसे पावन कोई बढ़कर।
है हमको आशा तुम्हारी प्रभुवर, दया की दीपक बुझा न देना।
हैं चाँद सूरज सितारे जितने तुम्हारे शक्ति से चल रहे।
अनन्त हो तुम सब अन्तवाले, मुझे नजर से न गिरा देना।