भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे नहीं भाता मेरा भावी स्मारक / येव्गेनी येव्तुशेंको
Kavita Kosh से
(गिओर्गी इवानोफ़ की स्मृति में)
मुझे नहीं भाता
मेरा भावी स्मारक
लगाया जाएगा जो
तीसरी दुनिया के किसी देश में
जहाँ महाशक्तियाँ चुपचाप
अपनी जेब में रखे कमंद में
अपनी जुएँ छिपाकर
घूँसे उछालती हैं
जहाँ झुके हुए हैं केले के पेड़
और पड़े हुए हैं सड़े-गले राकेट
--बस इतने ही फल हैं हमारे पास
अन्तोनफ़्का किस्म के सेब नहीं है
मुझे नहीं चाहिए
स्मारक
मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि
लौटा दिया जाए मुझे
मौत के बाद ख़त्म हुआ देश
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय