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मुझे बस, इतना पता है / रोज़ा आउसलेण्डर
Kavita Kosh से
पूछते हो तुम मुझसे
क्या चाहती हूँ मैं
मुझे यह नहीं पता
मुझे बस इतना पता है
ख़्वाब देखती हूँ मैं
ख़्वाब जी रहा है मुझे
और तैर रही हूँ मैं
इसके बादलों में
मुझे बस इतना पता है
प्यार करती हूँ मैं इंसान को
पहाड़ बागान समुद्र
जानते हैं कि बहुत से मुर्दा
रहते हैं मुझमें
आत्मसात करती हूँ मैं अपने ही
लम्हों को
जानती हूँ इतना ही
कि यह समय का खेल है
आगे-पीछे .
मूल जर्मन भाषा से प्रतिभा उपाध्याय द्वारा अनूदित