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मुझे भरोसा है / तुषार धवल

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मै प्रक्षिप्त शब्द
मृत्यु के नाचते पैरों के बीच
अंत का मुकम्मल अंत
कलम से पूछता हूँ

एक पन्ना कहीं उड़ कर
पूरी दुनिया छाप लाता है
और उसमे दुनिया भर की कब्रें होती हैं

मुझे नहीं चाहिए ये कब्रें ये नक्शे
क्योंकि अभी भी दुनिया को हाथों की ज़रूरत है
पहचान को ज़बान की ज़रूरत है

हवास के चेहेरे पर
फलसफों के मुखौटे
ध्वस्त मुंडेरों पर नाचने वाले अपने ही गिद्धों से परेशान होते हैं
और
चुप कर दिए गए लोग
बस देखते रहते हैं
उनके सन्नाटों में कोई चीखता है
पुकारता है
उनकी व्यस्तताओं के बीच

मुझे भरोसा है उस बस्ती का
जहाँ लोग बोलना भूल गए हैं .