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मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ / 'असअद' बदायुनी

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मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ
तेरे विसाल का उम्मीद-वार मैं भी हूँ

परिंद क्यूँ मेरी शाख़ों से ख़ौफ़ खाते हैं
के इक दरख़्त हूँ और साया-दार मैं भी हूँ

मुझे भी हुक्म मिले जान से गुज़रने का
मैं इंतिज़ार में हूँ शह-सवार मैं भी हूँ

बहुत से नेज़े यहाँ ख़ुद मेरी तलाश में हैं
ये दश्त जिस में बरा-ए-शिकार मैं भी हूँ

हवा चले तो लरज़ती है मेरी लौ कितनी
मैं इक चराग़ हूँ और बे-क़रार मैं भी हूँ