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मुझे ले जाया गया / शहंशाह आलम

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मुझे ले जाया गया निर्जन उस मठ के कोने में
मुझे ले जाया गया बदरंग उस क़िले के सन्नाटे में

मुझे बुलाया गया समुद्र की गर्जनाओं के बीच
एकदम अकेले हथियारों के बिना
बस निहत्थे

मुझे बुलाया गया पृथ्वी के उस हिस्से में
जहां थे सांपों के झुंड विषधर
जहां थी डायनासॉरों की भीड़ भयानक
जहां थी हरी घास बिलकुल ही नहीं बची हुई
जहां थे राक्षस असंख्य भूखे इधर-उधर घूमते

वहां न प्रार्थनाएं थीं न कोई मंत्रोच्चार पवित्र
न कोई किताब गद्य अथवा पद्य की
न जीवन की संभावनाएं प्रस्फुटित होती हुईं

मुझे जहां-जहां ले जाया गया जिन दशकों में
मुझे जहां-जहां बुलाया गया जिन नीरवताओं में
वहां पर थे सिर्फ़ औरतों के बलात्कारी
बच्चों के सीरियल किलर
क़ब्र खोदने वालों की मंडलियां अभ्यस्त

मुझे ले जाया गया दुर्गन्धित वध-स्थलों में
जहां पर थीं चीख़ें ही चीख़ें मनुष्यों की
जहां पर थी खीझ ही खीझ संतों की
जहां पर थी गूंज वीभत्स भयातुर आत्माओं की
जहां पर थे संगीत के उपकरण ख़ून से सने हुए

इस संसार में बचता हुआ दिखाई देता था
बस यही दृश्य
यही गुपचुप स्वर बोझिल
बस यही असंगत परिस्थिति
यही अलक्षित वायुमंडल

मुझे ले जाया गया बार-बार बारंबार
जहां पर थीं बेशुमार दंतकथाएं मृत्यु की हमारी ही।