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मुझे वो छोड़ कर जब से गया है इंतिहा है / ताहिर अदीम

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मुझे वो छोड़ कर जब से गया है इंतिहा है
रग-ओ-पय में फ़ज़ा-ए-कर्बला है इंतिहा है

मिरे हालात हैं नाराज़ इस पे क्या करूँ मैं
गुरेज़ाँ आसमानों से दुआ है इंतिहा है

ग़म ओ आलाम हैं या हसरतें हैं ज़िंदगी में
तुम्हारे बाद बाक़ी क्या बचा है इंतिहा है

फ़क़त तुम ही नहीं नाराज़ मुझ से जान-ए-जानाँ
मिरे अंदर का इंसाँ तक ख़फ़ा है इंतिहा है

कहीं मंज़र असालीब-ए-हवस के चार-सू है
कहीं पे ख़ून-आलूदा फ़ज़ा है इंतिहा है

ख़मोशी तोड़ दे ऐ ख़ालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा अब
तिरी मख़्लूक़ बन बैठी ख़ुदा है इंतिहा है

ग़ज़ल जो तुम पे ‘ताहिर’ ने लिखी थी जान-ए-‘ताहिर’
वही है ज़ीनत-ए-बाम-ए-बक़ा है इंतिहा है