Last modified on 20 अगस्त 2009, at 16:21

मुझे सन्तोष है / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

बची है धरती में जन्म देने की शक्ति
बचा हई बादलों में भूरा रंग
मुझे सन्तोष है

बची है लकड़ी में आग
बचा है नींद में स्वप्न
मुझे सन्तोष है

बच गई हो
ओस की बूंद की तरह
बच्चे की ज़िद की तरह
मुझमें थोड़ा-सा तुम
मुझे सन्तोष है ।