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मुझे सन्तोष है / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
बची है धरती में जन्म देने की शक्ति
बचा हई बादलों में भूरा रंग
मुझे सन्तोष है
बची है लकड़ी में आग
बचा है नींद में स्वप्न
मुझे सन्तोष है
बच गई हो
ओस की बूंद की तरह
बच्चे की ज़िद की तरह
मुझमें थोड़ा-सा तुम
मुझे सन्तोष है ।