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मुझे सर झुकाने की आदत नहीं है / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
मुझे सर झुकाने की आदत नहीं है
किसी का लूँ एहसां ज़रुरत नहीं है
दिलों में ख़ुलूस ओ मोहब्बत न शफ़क़त
निगाहों में भी अब मुरव्वत नहीं है
बहुत खो चुकी हूँ खुदा अब रहम कर
बस अब और खोने की हिम्मत नहीं है
सभी गुम हैं अपनी ही दुनिया में ऐसे
किसी को किसी की ज़रूरत नहीं है
मिली है तबाही से ये आगही भी
किसी के भी बस में ये क़ुदरत नहीं है
मेरे राह में आके काँटे बिछाये
किसी शख़्स में इतनी जुर्रत नहीं है
सिया शायरी मेरी पहचान होगी
मुझे झूठी शोहरत की चाहत नहीं है