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मुझ पर मुझसे दूना अधिकार तुम्हारा है / जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’

मुझ पर मुझसे दूना अधिकार तुम्हारा है।
मन-सागर हृदि-पत्तन व्यापार तुम्हारा है॥

पत्र सम्पुटित पल्लव-दल पदचाप बने हैं
सुधा-अधर रतिपति-से भौंह-कमान तने हैं
असूर्यम्पश्या प्रतिमा सम्भार तुम्हारा है।
मन-सागर हृदि-पत्तन व्यापार तुम्हारा है॥

कर्णमेरु वसुधा श्रुति-मण्डित केयूर हुए
कुन्तल करद बने घन मन प्रशस्त मयूर हुए
अंग अंग शोभा का भण्डार तुम्हारा है।
मन-सागर हृदि-पत्तन व्यापार तुम्हारा है॥

प्राण-शक्ति सन्दीपित है युग नैन-जलज से
पूरित जीवाश्वमेध है चिर प्रणय-अलज से
युगदेवी सीता-सा व्यवहार तुम्हारा है।
मन-सागर हृदि-पत्तन व्यापार तुम्हारा है॥

वेद-ऋचा-सी पावन मन्त्रात्मक वाणी हो
मंगलमूर्ति मनोज्ञा सचमुच कल्याणी हो
गीता-दर्शन-निर्मित संसार तुम्हारा है।
मन-सागर हृदि-पत्तन व्यापार तुम्हारा है॥

हेमलता कुन्तल में बाँधे कचनार-कली
मलयज गन्धापूरित ललित लवंगी मचली
काव्यसम्भवा यवनी-सा प्यार तुम्हारा है।
मन-सागर हृदि-पत्तन व्यापार तुम्हारा है॥