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मुझ पे जीना भी आज भारी है / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

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मुझपे जीना भी आज भारी है
मैंने फ़ुर्कत की शब गुज़ारी है

मिलते रहते है हर क़दम सदमे
मेरी किस्मत में आहो-ज़ारी है

रंजो-ग़म है, अलम है, सदमे हैं
तेरी फ़ुर्कत है आहो-ज़ारी है

तुमसे पाई है इश्क़ में मैंने
दौलते-रंज मुझको प्यारी है

दिल को छेड़ा है याद ने फिर से
फिर मेरे दिल का जख़्म कारी है।