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मुझ में ख़ुशबू बसी उसी की है / 'रम्ज़ी' असीम

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मुझ में ख़ुशबू बसी उसी की है
जैसे ये ज़िंदगी उसी की है

वो कहीं आस-पास है मौजूद
हू-ब-हू ये हँसी उसी की है

ख़ुद में अपना दुखा रहा हूँ दिल
इस में लेकिन ख़ुशी उसी की है

यानी कोई कमी नहीं मुझ में
यानी मुझ में कमी उसी की है

क्या मिरे ख़्वाब भी नहीं मिरे
क्या मिरी नींद भी उसी की है