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मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना / श्रद्धा जैन

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मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना
पल में रोता, पल में हंसता है आईना

शायद कोई उम्मीद जगे अब सीने में
दरवाज़े को शब भर तकता है आईना

दिलवर हैं आ बैठे, पल भर को पास मेरे
इक दुल्हन जैसा अब सजता है आईना

गैरों के घर रोशन करने की है आदत
चुपचाप इसी धुन में जलता है आईना

राजा और प्यादा में अंतर करता है जग
हर इक को इक कद में रखता है आईना

आगाज़ ग़ज़ल का कर ही दो अब “श्रद्धा” तुम
उलझा-उलझा मुझको दिखता है आईना