मुझ से अब वो बेख़बर है क्या करूँ
दर्दे दिल अब दर्दे सर है क्या करूँ
नामा ए दर्दे जिगर है क्या करूँ
पढने वाला कम नज़र है क्या करूँ
दिल को है तुमसे बिछड़ने का मलाल
वक्ते रुख़सत चश्मे तर है क्या करूँ
उड़ के आ जाता तुम्हारे पास दिल
ये मगर बे बालो पर है क्या करूँ
ऐब अपने मैं छुपाऊं किस तरह
आईना पेशे नज़र है क्या करूँ
पढ़ नहीं पाई कोई चेहरा कभी
आँख मेरी बे हुनर है क्या करूँ
अपना बचपन फिर बुलाऊं किस तरह
हर सदा अब बेअसर है क्या करूँ
दूर मंज़िल रास्ता दुश्वार है
पर बज़िद अज़्म ए सफ़र है क्या करूँ
काम दुनिया भर के है सर पर 'सुमन'
ज़िंदगानी मुख़्तसर है क्या करूँ