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मुझ से अमरता की आप बात न करें / ओसिप मंदेलश्ताम
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मुझ से
अमरता की
आप बात न करें
मैं उसे तनिक भी झेल नहीं सकता
चूँकि अमरता यह
क्षमा नहीं करती मुझे
मेरी अल्हड़ता, मेरा प्रेम
सुनाई दे रहा है मुझे स्वर
बढ़ रही है वह अनन्त
लुढ़क रही है गेंद की तरह अर्धरात्रि में
पर जो पहुँचेगा इसके निकट
उसके लिए होगी
यह बड़ी विकट
झाग की तरह
उसका विशाल रूप
गूँज रहा है धीमे स्वर में
और प्रसन्न मैं सोच रहा हूँ
सौन्दर्य और तुच्छता के विषय में
(रचनाकाल : 1909)