मुठ्ठी भर लड़ाईयां / संजय शेफर्ड
जिन पैरों को अथाह दूरी नापनी थी
वह वस्तुतः थक चुके थे
और मैंने कहीं पढ़ा भी था कि
गर सफ़र लम्बा हो तो थकान जरूरी है
इसीलिए रास्तें में आ रही
इन तमाम थकानों को
मैं अपने लिए उपहार घोषित करता हूं
और पूरी दुनिया को चिल्ला- चिल्लाकर
यह बता देना चाहता हूं कि
मेरा थकना मेरे लिए उतना ही लाज़मी है
जितना मेरी जीत
इसलिए महज़ एक जीत के लिए
एक- दो नहीं अपितु सैकड़ों बार
थकना चाहता हूं
देह की लाख टूटन के बावजूद
आने वाली सुबहों कि
उन तमाम उदासियों को
अतीत की गहरी खाई में फेंक
वर्तमान को अपनी ज़ख़्मी छातियों में
सुरक्षित कर लेना चाहता हूं
यह जानते हुए भी कि
भविष्य अपरिभाषित होता है
अतीत असुरक्षित
और जीवन हास्यापद
फिर भी एक मुठ्ठी लड़ाई
अगले सफ़र के लिए खुदमें बचा लेना चाहता हूं।