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मुदावा दर्दे-दिल का ऐ मसीहा छोड़ देना / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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मुदावा दर्दे-दिल का ऐ मसीहा२छोड़ देना
हमारे हाल पर हम को ख़ुदारा छोड़ देना
तुम्हीं ईमान से कह दो कहां तक है मुनासिब
किसी को यूं भरी दुन्या में तन्हा छोड़ देना
यही मस्लक था जब तुम साथ होते थे हमारे
जहां से सब गुज़रते हों वो रस्ता छोड़ देना
ज़माने भर की ख़ुशियां अपने दामन में समोना
हमारे वास्ते ग़म का ख़ज़ाना छोड़ देना
हथेली पर लिए सर को निकलना घर से यारों
जो जीना है तो जीने की तमन्ना छोड़ देना
गुलों से खेलना तुम ये दुआ है और हम को
किसी जलते हुए सहरा में तन्हा छोड़ देना
जो दिल में पार उतरने की तमन्ना है तो 'रहबर`
किसी तूफ़ान में अपना सफ़ीना छोड़ देना