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मुदे नयन, मिले प्राण, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

मुदे नयन, मिले प्राण,
हो गया निशावसान।

जगते-जग के कलरव
सोये, उर के उत्सव
मन्द हुए स्पन्दित जब,
मिले कण्ठ-कण्ठ गान।

एक हुए दोनें वर
ईश्वर के अविनश्वर,
पार हुए घर-प्रान्तर,
अन्तर में निरवमान!

ज्ञान-सूत्र में मिलकर
स्वर्ग से चढ़े ऊपर,
जहाँ नहीं नर, न अमर,
सुन्दरता का विधान।