मुद्दआ दिल का उसी शख्स से पाया होगा / शोभा कुक्कल
मुद्दआ दिल का उसी शख्स से पाया होगा
जिसने सर अपना अक़ीदत में झुकाया होगा
बददुआ फिर भी न सन्तों ने उसे दी होगी
उसने संतों के अगर दिल को दुखाया होगा
कौन कहता है मुरादे न बर आई होंगी
आस का दीप अगर दिल में जलाया होगा
मुफ़लिसी धन है गरीबों का कोई क्या जाने
कैसे ये रिश्ता गरीबों ने निभाया होगी
रोटी जब जाके मिली होगी किसी मुफ़लिस को
पेट की थाप पे इक गीत सुनाया होगा
वो उजालों का मसीहा ही तो होगा कोई
जिसने इक दीप अंधेरे में जलाया होगा
चांद तारों की ज़ियामांद तो हुई होगी
उसने रुख़सार से पर्दा जो हटाया होगा
हमको मालूम न था ये भी खुलेगा इक दिन
हम जिसे अपना समझते थे पराया होगा
वो नहीं मंज़िल-ए-मक़सूद को पाने वाला
जिसने मेहनत से दिलो-जां को चुराया होगा
कौन वो प्रेम की दीवानी थी जिसने शोभा
ज़हर का छलका हुआ जाम उठाया होगा।