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मुद्दतों बाद भी लगता है वो बदला ही नहीं / ओम प्रकाश नदीम

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मुद्दतों बाद भी लगता है वो बदला ही नहीं
वक़्त ने धोया बहुत रंग वो छूटा ही नहीं

जुस्तजू मेरी तेरे पास ही लौट आती है
तुझ सा नायाब कोई दूसरा मिलता ही नहीं

मैं उसे छोड़ के जाऊँ भी तो जाऊँ कैसे
वो कहीं और मुझे छोड़ के जाता ही नहीं

एक मस्ती भरा सैलाब उमड़ आया था
उस तरह फिर वो कभी झूम के बरसा ही नहीं

मैंने सोचा था कि फ़ौरन वो कहेगा सॉरी
वो भी ज़िद्दी था बहुत फ़ोन उठाया ही नहीं

रोज़ मैं अपनी वफ़ा इसमें उड़ेलता हूँ मगर
ये मुहब्बत का घड़ा ऐसा है भरता ही नहीं

अब ये आलम है कि कोई भी बुराई उसकी
कान सुन भी लें मगर ज़हन तो सुनता ही नहीं