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मुद्दतों रूबरू हुए ही नहीं / संजू शब्दिता

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मुद्दतों रूबरू हुए ही नहीं
हम इत्तेफाक़ से मिले ही नहीं

चाहने वाले हैं सभी उनके
वो सभी के हैं बस मेरे ही नहीं

दरमियाँ होता है जहाँ सारा
हम अकेले कभी मिले ही नहीं

वो बहाने से जा भी सकता है
हम इसी डर से रूठते ही नहीं

सादगी से कहा जो सच मैंने
वो मेरे सच को मानते ही नहीं