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मुद्दत हुई सजन ने दिखाया नहीं जमाल / वली दक्कनी
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मुद्दत हुई सजन ने दिखाया नहीं जमाल
दिखला अपस के क़द कूँ किया नईं मुझे निहाल
यक बार देख मुझ तरफ़ अय ईद—ए— आशिक़ाँ
तुझ अब्रुआँ की याद सूँ लाग़िर हूँ ज्यूँ हिलाल
वोह दिल के था जो सोखता—ए—आतिश—ए—फ़िराक़
पहुँचा है जा के रुख़ कूँ सनम के बरंग—ए—ख़ाल
मुम्किन नहीं कि बदर हूँ नुक़्साँ सूँ आशना
लावे अगर ख्याल में तुझ हुस्न का कमाल
गर मुज़्तरिब है है आशिक़—ए—बेदिल अजब नहीं
वहशी हुए हैं तेरी अँखाँ देख कर ग़ज़ाल
फ़ैज़—ए—नसीम—ए—मेह्र—ओ—वफ़ा सूँ जहान में
गुलज़ार तुझ बहार का है अब तलक बहाल
खोया है गुलरुख़ाँ ने रऊनत सूँ आब—ओ—रंग
गर्दन—कशी है शम्अ की गरदन ऊपर वबाल